यादों का चश्मा ..

यादों का चश्मा ..

लघु कथा

रात देर से आँख लगी ,पता नहीं क्यों घर की बतियां भी जल रहीं थीं ....रात को आँखों में अचानक जलन हुयी तो ..आँख को छूना चाहा तो ,मालूम हुआ मैं चश्मे के साथ ही सो गया हूँ ...

ऊठ कर पानी पीकर मुँह धोया घर की बतियां बन्द की ,पौ फटने को थी ....

मैं अक्सर चश्मे के साथ ही कित्ताब पढ़ते -- पढ़ते सो जाता था ,तब हमारा रिश्ता ,जंग लगे लोहे के पत्रे की तरह हो गया था की उस पर अगर कोई भी पैर रखता तो गिर जाता ..लोहा ज़ितना मजबूत होता है उतना ही कमज़ोर भी ..उसकी rust जंग ही उसे खत्म कर देती है ..

अक्सर तुम ,किताब मेज पर रख कर ..चश्मा साथ ही रख देती थीं ..तब शायद रिश्ते में कुछ सांसे बाकी थीं ..रिश्ते

ऑन् आफ नहीं होते एक दम ...उन्हें तिल तिल कर मिटना होता है ..

एक सदी बीत गयी उस बात को ...पता नहीं कितने चश्में मेरे सिरहाने के नीचे दब कर टूट गए ..

कितनी किताबें और रस्साले मेरे साथ सोते रहे ..

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rameshpathania

I write in Hindi ,poetry,short stories ,opinion on environment and development.Translator IIMC Delhi &HPU SHIMLA .Follow ,support .