आज सुबह
मॉर्निंग नोट्स
३१ /०७/२०२२
मुंशी प्रेमचंद जी
आज सुबह , बहुत जल्दी आँख खुल गयी , बिस्तर पर लेटे रहने का कोई फायदा नहीं था , बाहर बारिश हो रही थी , कल शाम जो कपड़े रह गए थे थोड़ा गीले थे , वे अब पूरी तरह भीग चुके थे। रस्सी टूटने को है उनके बोझ से। खैर आज बहुत बड़ा दिन है , विश्व के प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार , मुंशी प्रेमचंद जी का जन्मदिवस। ३१ जुलाई। ऐसा कोई बिरला ही होगा , जिसने उन्हें हिंदी में न पढ़ा हो , और जो हिंदी नहीं जानते उन्होंने किसी दूसरी भाषा में उनकी पुस्तकों का अनुवाद पढ़ा न हो .
मुंशी प्रेमचंद जी का रचना संसार बहुत फैला हुआ है। कहानी , उपन्यास , निबंध , बाल कहानियां। कुछ समय उन्होंने 'नबावराय ' के नाम से लिखा , उनका नाम धनपत राय था। उनका जीवन बहुत संघर्षमय था , सही माने में संघर्षमय , हमारे बम्बईया फिल्मकारों के संघर्ष से थोड़ा अलग। उनका शरीर भी ज्यादा सेहतमंद नहीं रहता था। गरीबी तो थी ही। पढ़ने का लिखने का बहुत शौक था। कुछ भी पढ़ जाते थे। उनके अपने शब्दों में,"मेरा जीवन स्पाट समतल मैदान है , जिसमें कहीं कहीं गड्डे तो हैं , पर टीलों , पर्वतों , घने जंगलों , गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौक़ीन हैं ,उन्हें तो यहां निराशा ही होगी। "
गोदान , गबन , उनके साहित्यक मील के पत्थर हैं। बेशुमार कहानियां ,आपको गाँव के परिवेश और पात्रों से मिलावएंगी जो आज भी भारत के गाँव में कहीं न कहीं , कुएँ पर ,खेत में , मंडी में , सड़क पर , बैलों के साथ , बैलों के बिना , आँगन में , किसी फैक्टरी के गेट के बाहर मिल जाएंगे। २०० साल में भारत में यह पात्र बदले ही नहीं। हाँ हो सकता है कपड़ों का रंग थोड़ा उजला हो , या उस पर पैबंद कम लगे हों , या पैरों में हवाई चप्पल आ गयी हो। मुंशी प्रेम चंद अपने बहुत से पात्र , अपनी गल्पों के बहुत से पात्र छोड़ गए हैं। हाँ इतने सालों में दूसरे कोई मुंशी प्रेम चंद पैदा नहीं हुए , जिस तरह गुरूवर टैगोर , या शरतचंद्र नहीं हुए।
मेरी प्रिय कहानियों में , शतरंज के खिलाड़ी , जुलुस ,दो बैलों की कथा ,कफ़न , ठाकुर का कुआँ ,पूस की रात , बड़े घर की बेटी और ईदगाह है। गोदान और गबन , आप को पांच साल के अंतराल के बाद फिर से पढ़ने चाहिए।
आज अपनी किताबों में देखता हूँ , तो उनकी कुछ किताबें देख कर अच्छा लगता है। अगर आपके पास उनकी ज्यादा किताबें नहीं है तो कमल किशोर गोयनका और निर्मल वर्मा जी द्वारा सम्पादित एक किताब है , साहित्य अकादमी ने प्रकाशित की है , प्रेमचंद , रचना -संचयन , जरूर खरीदें। मुंशी जी प्रखर पत्रकार भी थे।
कई बार बनारस जाना हुआ , हर बार लमही नहीं जा पाया , उनके घर की दीवार को छूने भर का मन है , या उस गली से गुजरने का , जहां से मुंशी जी गुजरते थे।
आज रविवार है , मुंशी जी की कोई कहानी पढ़ें , आपको सब कुछ एक फिल्म की तरह दिखाई देगा , और पात्रों की आवाजें भी कहीं सुनाई दें।
आप का दिन शुभ हो।
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