सुबह की चाय ,

सुबह की चाय ,
मैंने चाय के दो कप , मेज़ पर रखे और मिंक्स को आवाज़ दी, चाय बन गई है , आओ , और खुद अखबार का बंडल खोलने लगा , काला पतला रब्बर बैंड
टूट गया और अंगुली सुन्न कर गया , मिंक्स ज़ोर से बोली आ रही हूँ ना , चाय को लेकर पूरा घर सर पर उठा लेते हो , मिंक्स ने अपने गीले बालों को बड़े Turkish towel में पता नहीं क्यों लपेट रखा था , उसके बाल बहुत लम्बे थे और घने भी और काले भी सीधे और खुले रहें तो कमर छूते थे वरना एक बन और उसमे अटकी चॉपस्टिक या पेंसिल , उसके गालों पर और गर्दन पर पानी की बूंदे ठहरी हुईं थी, सुन्दर त्वचा में गर्दन पर काला तिल और भी अच्छा लग रहा था , कभी मुझे लगता था यह तिल हल्का भूरा है , उसकी हेज़ल आँखों की तरह।
ऐसे क्यों देखते हो मुझे जब भी मैं नहा कर निकलती हूँ , और चाय तब ही क्यों बनाते हो ,मैंने मुस्कुराते हुए कहा , ":ठीक है कल से ऐसा नहीं होगा", मिंक्स ने हँसते हुए पूछा , क्या नही होगा , सुबह की चाय नहीं बनाओगे या मुझे नहीं देखोगे ऐसे ,जैसे पहली बार देखा हो किसी को।
चाय नहीं बनाऊंगा

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rameshpathania

I write in Hindi ,poetry,short stories ,opinion on environment and development.Translator IIMC Delhi &HPU SHIMLA .Follow ,support .